Monday, March 23, 2009

तुम भी होगे इन तारों में...

भगतसिंह की शहादत को यूँ तो जमाना गुजर गया, पर भूल पाता मैं, ये मुमकिन न था. वैसे भी अब जब माहोल गरम हो गया है सियासती तानो-बानो से, तो मीडिया भी क्यूं पीछे रहे, और उन्हें भूल गया जो शामिल है हर जर्रे में, हर वजूद में, हर ख्वाब में, हर दास्ताँ में...
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तुम भी होगे इन तारों में, तलाश काश ये रुक जाती,
सफ़र बहुत लम्बा है अब भी, आते तुम बनकर साथी,

भोली शक्ल, शराबी आँखें, लम्बा कद, मतवाली चाल,
जोश-जूनून के साथ होश भी, ताने आते तुम छाती,

निकला था मैं घर से अपने, ख्वाबों के खजाने साथ रहे,
तुम जो होते इन राहों में, मेरी तन्हाई मंजिल पाती,

उजड़ा पड़ा है चमन तुम्हारा, कोई नहीं रखवाला यहाँ,
सब लगे हैं माल बनाने, कोई न रहा अब जज्बाती,

बिसात बरसों की बिछाकर, चल रही है बे-नूर आंधी,
चुनाव जब भी सर पर आते, अक्सर तुम्हारी याद आती.

1 comment:

kimi said...

lovely dear.. May i know who inspires you for all these!!!! i like each one am reading....u r a great writer wid excellent sense of feeling...
Hats off to you Nysh..